Missing Independents from Assemblies: भारत में चुनाव मुख्य रूप से राजनीतिक दलों के इर्द-गिर्द लड़े जाते हैं और निर्दलीय उम्मीदों को तब तक अहमियत नहीं दी जाती जब तक कोई बहुत बड़ा चेहरा न हो. हालिया हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में भी तीन दशकों में सबसे कम निर्दलीय विधायक चुने गए, खासतौर से हरियाणा में.
न्यूज18 ने एक विश्लेषण किया है, जिसके आधिकारिक डेटा के मुताबिक, न केवल हरियाणा में बल्कि पिछले कुछ सालों में पूरे भारत में हुए विधानसभा चुनावों में या तो बहुत कम निर्दलीय विधायक चुने गए या फिर चुने ही नहीं गए.
क्या है इस विश्लेषण में?
निर्दलीय उम्मीदवारों की स्थिति को समझने के लिए, न्यूज18 ने 2020 से 2024 के बीच पूरे भारत में हुए विधानसभा चुनावों का विश्लेषण किया. इस साल, जिन पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से सिर्फ जम्मू-कश्मीर में पांच से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए. वहीं, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और हरियाणा विधानसभाओं में तीन-तीन निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए.
इस साल हरियाणा और जम्मू-कश्मीर सहित 6 विधानसभा चुनावों में कुल मिलाकर कम से कम 2,240 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई और केवल 16 ही सदन में पहुंच पाए, जिनमें केंद्र शासित प्रदेश से सात उम्मीदवार शामिल थे.
किंगमेकर भी बनते हैं निर्दलीय उम्मीदवार
देश भर में पिछले कई चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यहां तक कि वे किंगमेकर भी रहे हैं. हालांकि, लगभग सभी चुनावों में जनता के स्पष्ट जनादेश जारी किए जाने के कारण चुनाव मुख्य रूप से दो-पक्षीय प्रणाली बन गए हैं.
2024 में हजारों निर्दलीय उम्मीदवारों ने आजमाई किस्मत
इस साल के विधानसभा चुनावों में लगभग 2200 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन इनमें से गितनी के उम्मीदवार विधानसभा तक पहुंच पाए. ओडिशा में 425 निर्दलीयों में में सिर्फ 3, आंध्र प्रदेश में 984 में से एक भी नहीं, हरियाणा में 464 में से 3, जम्मू-कश्मीर में 346 में से 7, अरुणाचल प्रदेश में 13 में से 3 उम्मीदवार जीत पाए और सिक्किम में 8 में से एक भी निर्दलीय उम्मीदवार नहीं जीत पाया.
इसी तरह 2023 के विधानसभा चुनावों में लगभग 4.4 हजार निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी लेकिन इनमें से सिर्फ 16 उम्मीदवार जीत पाए.
2020-24 तक 14 हजार से ज्यादा उम्मीदवारों ने आजमाई किस्मत
पूरे भारत में 2020 से 2024 के बीच 29 विधानसभा चुनाव हुए. इस गणना में सिर्फ महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव शामिल नहीं किए गए, जो पिछली बार 2019 में हुए थे. कुल 14,040 निर्दलीय उम्मीदवारों ने विधानसभा चुनाव लड़ा और सिर्फ 62 ही सदन में पहुंच पाए. कुल 11,599 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
10 राज्यों में हुए 29 चुनावों में से कोई भी निर्वाचित विधायक निर्दलीय नहीं चुना गया. इस लिस्ट में दिल्ली, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं. कम से कम 19 विधानसभा चुनावों में कम से कम एक या उससे अधिक निर्दलीय उम्मीदवार चुने गए.
असम, बिहार, पंजाब और पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ एक-एक निर्दलीय विधायक चुने गए. पिछले विधानसभा चुनावों में सिर्फ़ चार राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों- राजस्थान (आठ), जम्मू-कश्मीर (सात), केरल (छह) और पुडुचेरी (छह) ने पांच से ज़्यादा निर्दलीय विधायक चुने हैं. 2022 में जब राज्य में चुनाव हुए तो 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा और 60 सदस्यीय मणिपुर में तीन निर्दलीय विधायक चुने गए.
निर्दलीय उम्मीदवारों को क्यों नहीं मिलती कामयाबी?
जब तक कोई बड़ा नाम या वास्तव में जमीन पर काम करने वाला कोई नेता निर्दलीय के रूप में चुनाव नहीं लड़ता, लोग आमतौर पर उन्हें चुनने से कतराते हैं, क्योंकि वे जनता की मांगों को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं.
इसके अलावा, ज़्यादातर मामलों में, निर्दलीय उम्मीदवार या तो सत्ताधारी पार्टी का समर्थन करते हैं या बाद में उसमें शामिल हो जाते हैं – जैसा कि इस बार हरियाणा में हुआ. इसलिए, उस सीट पर सत्ताधारी पार्टी को नकारने वाले मतदाता ठगा हुआ महसूस करते हैं.
इसके अलावा, लगभग 90 प्रतिशत निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए, पैसे और जनशक्ति की सीमाओं के कारण उनका अभियान दूसरों की तरह व्यापक और शक्तिशाली नहीं हो पाता. यही कारण है कि ज्यादातर बार, मतदाताओं को वास्तव में चुनाव मैदान में मौजूद निर्दलीय उम्मीदवारों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं होती है.
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